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मन में सीखने की इच्छाशक्ति का होना सर्वोपरि है

मुंबई (सुनील योगी)। दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं जो ये कह सके कि उसके पास सीखने के लिए कुछ बचा नहीं। इतना ज्ञानी या जानकार कोई भी नहीं क्योंकि सच्चाई यह भी है कि दुनिया में सीखने के लिए इतनी विपुल जानकारी उपलब्ध है कि किसी एक व्यक्ति द्वारा अपने पूरे जीवनकाल में भरपूर प्रयास करने पर भी सब कुछ सीख पाना असंभव है। इसलिए यह सिर्फ अनभिज्ञता की बात नहीं बल्कि यह भी जरूरी है कि कैसे सावधानी से हमें अपनी रुचियों का चयन करना है और जहां भी संभव हो सीखते रहना है। अब सीखने के लिए चीज़ें भरपूर हैं और इंसान में क्षमता भी हो सकती है, लेकिन मन में इच्छाशक्ति का होना सर्वोपरि है। ग्राही होने के लिए विनम्रता आवश्यक है मतलब स्वयं में अहंकार नहीं होना चाहिए की “मुझे सब पता है।” जब हम सीखने की आरजू रखते हैं तो ब्रह्माण्ड के किसी कोने से गुरु ख़ुदबख़ुद प्रकट हो जाते हैं।

उदहारण के लिए वैसे तो मुझे खुद कई लोग कहते हैं कि मेरे अन्दर सीखने की चाहत बहुत है और ये सच भी है, क्योंकि यही रूझान मुझे अपने पसंदीदा कार्यों से सम्बंधित तमाम क्षेत्रों व संभावनाओं से रूबरू कराने में उपयोगी रही है। एक और उदाहरण देकर स्पष्ट करना चाहूंगी। अभी कुछ डेढ़ महीने पहले, इस साल के करवा चौथ के दिन अर्शी नाम की एक कॉलेज की छात्रा को मेहँदी के लिए हमने बुलाया था। वह एक पोस्ट ग्रेजुएट की छात्रा है जो सोशियोलॉजी में MA कर रही है, और मेहँदी आर्ट उसने कहीं से सीखा नहीं है और उसे आगे इसमें अपना कैरियर भी नहीं बनाना है, वो तो यूँ ही शौक से लगाती है और साथ में पॉकेट खर्च के लिए कुछ कमा भी लेती है। मुझे अपने हाउसिंग सोसाइटी की महिलाओं के लिए करवा चौथ पर मेहंदी आर्टिस्ट की तलाश थी, ऐसे में मेरे एक कान्टेक्ट से अर्शी का कांटेक्ट नंबर मिला और मैंने उसे फिक्स कर लिया। अर्शी को उसकी दोस्त ने बता रखा था कि मैं एक राइटर हूँ, ऑथर हूँ और भी पता नहीं क्या क्या। अब जब करवा चौथ के एक दिन पहले वह यहाँ आई और सबको एक-एक करके मेहँदी लगाते मेरी बारी आई तो जैसे अर्शी ने ठान रखा था कि मेरे साथ उसके सानिध्य के उस डेढ़ घंटे को उसे यूँ ही चुपचाप नहीं गंवाना है। वह बड़ी मासूम सी मगर बेहद समझदार लगी, और मेरे हाथों में खूबसूरत मेहंदी डिज़ाइन गढ़ते हुए बड़ी कुशाग्रता व बुद्धिमत्ता के साथ दिलचस्प अंदाज़ में वह लगभग मेरा इंटरव्यू ले रही थी। वो मेरे बारे में जानने को इच्छुक थी, और धीरे-धीरे करके मेरे व्यक्तित्व के उन सभी प्रेरणादायक गुणों के बारे में एक जर्नलिस्ट की तरह पूछ लिया, जो उसके दोस्त के कहने पर उसे यहाँ खींच लायी थी। वो बार-बार कहती रही “दीदी आप इतना सब कैसे कर लेते हो, मैं तो आपकी वजह से आयी हूँ, मुझे आपसे मिलना भी था। मुझे आपकी किताब भी पढ़नी है, मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है।” अर्शी की पढ़ने में दिलचस्पी देखकर मैंने उसे अपनी किताब वेव्स वीथिन भी भेंट की और उसने एक महीने के अंदर पढ़ भी लिया। वो लड़की मुझसे प्रेरणा लेकर गयी वो तो ठीक है लेकिन मुझे उससे एक गहरी बात सीखने को मिली कि कैसे उसने उस दुर्लभ डेढ़ घंटे को इतना सार्थक व अविस्मरणीय बना दिया। अर्शी जैसे सीखने की आरजू रखने वाले अकलमंद युवा वर्ग देश वर्तमान व भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।

– शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई

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