शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महान योद्धा थे और उन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने की बजाय मरना बेहतर समझा. संभाजी ने 12 लाख वर्गमील तक फैले मुगल शासन को खुली चुनौती दी थी. गद्दारी का शिकार बनने के बाद वे मुगलों के बंदी बने थे.
मराठा और मुगल कब पहली बार हुए थे आमने–सामने:—
शिवाजी ने मुगलों को टक्कर देने के लिए मराठा साम्राज्य की स्थापना की
आगरा के किले से मुगलों को चकमा देकर भाग निकले थे शिवाजी और संभाजी
संभाजी ने औरंगजेब को कर दिया था बुरी तरह परेशान:—-
औरंगजेब ने संभाजी की मौत के लिए अपना ताज सिर से उतार दिया था : मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों को कभी भी दक्कन यानी पश्चिमी और दक्षिणी भारत पर पूरी तरह से अधिकार नहीं करने दिया. शिवाजी महाराज की गुरिल्ला युद्ध नीति ने मुगलों को हमेशा परेशान किया, बावजूद इसके शिवाजी को मुगलों के हाथों शिकस्त मिली और उन्हें मुगल सेनापति जयसिंह के साथ पुरंदर संधि करनी पड़ी थी. लेकिन जब संभाजी यानी छावा ने मराठा साम्राज्य की गद्दी संभाली, तो उन्होंने औरंगजेब और मुगल शासन को नाकों चने चबवा दिया था. यहां तक कि उन्होंने औरंगजेब से यह कहा था कि वह उनका इतना बुरा हाल करेंगे कि उसे दिल्ली में मौत भी नसीब नहीं होगी और यह सच भी साबित हुआ.
मराठा और मुगल कब पहली बार हुए थे आमने–सामने:—–
मुगलों ने जब पूरे भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहा और इसके लिए वे दक्षिण की ओर बढ़े, तो उनका सामना मराठों से हुआ. मराठों की युद्ध नीति बहुत ही खास थी और मुगलों ने यह माना कि मराठों को हराए बिना दक्कन पर कब्जा संभव नहीं और यह उतना आसान भी नहीं है. मराठों और मुगलों का पहला सामना 1615 में हुआ और जहांगीर ने कुछ मराठा सरदारों को अपने साथ कर भी लिया. शिवाजी के पिता शाहजी मुगलों के साथ हो गए थे, लेकिन बाद में वे उनसे अलग हो गए. मराठा शासकों में छत्रपति शिवाजी और संभाजी राजे ने ही मुगलों को कड़ी टक्कर दी और उन्हें कई बार घुटने पर लेकर आए.
शिवाजी ने मुगलों को टक्कर देने के लिए मराठा साम्राज्य की स्थापना की:—-
आगरा किले से भाग निकले शिवाजी, ai image
छत्रपति शिवाजी ने मुगलों को दक्षिण में पांव पसारने से रोकने के लिए मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी. शिवाजी ने बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को मारकर यह साबित कर दिया था कि वे एक अजेय योद्धा हैं. उनकी बढ़ती ताकत से औरंगजेब बहुत परेशान था. उसने अपने दक्षिण के वायसराय को उनके खिलाफ युद्ध के लिए भेजा, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. उसके बाद औरंगजेब ने अपने प्रमुख सेनापति जयसिंह को विशाल सेना के साथ भेजा, जिसमें शिवाजी की हार हुई और उन्हें पुरंदर की संधि करनी पड़ी.
पुरंदर की संधि 11 जून 1665 को हुई थी:—-
पुरंदर संधि के तहत शिवाजी को 23 किले मुगलों को सौंपने पड़े
इस संधि के तहत 12 किलों पर शिवाजी के अधिकार को मान्यता दी गई थी.
शिवाजी ने अपने बेटे संभाजी को मुगलों के दरबार में भेजा था.
आगरा के किले से मुगलों को चकमा देकर भाग निकले थे शिवाजी और संभाजी:—
पुरंदर की संधि के बाद जब शिवाजी औरंगजेब से मिलने उसके आगरा दरबार में आए, तो औरंगजेब ने उनका अपमान किया और उन्हें संभाजी के साथ किले में कैद करवा दिया. शिवाजी ने इतने में हार नहीं माना और उन्होंने बीमारी का बहाना बनाकर वहां रहना शुरू किया, जिसकी वजह से उनकी सुरक्षा कम कर दी गई. जिसके बाद वे फल–मिठाई मंदिरों के लिए भेजने लगे और एक दिन इसी फल–मिठाई की टोकरी में बैठकर वे आगरा के किले से संभाजी के साथ भाग निकले थे. शिवाजी और संभाजी के भागने से औरंगजेब बहुत परेशान हो गया था.
संभाजी ने औरंगजेब को कर दिया था बुरी तरह परेशान:—
1680 में शिवाजी की मौत के बाद संभाजी छत्रपति बने. शिवाजी के बेटे संभाजी राजे, जिन्हें छावा यानी शेर का बच्चा कहा जाता है, उन्होंने मराठा साम्राज्य को विस्तार देने और मुगलों को टक्कर देने के लिए इतना पराक्रम दिखाया कि औरंगजेब बौखला गया था और उसने संभाजी को मारने के लिए कसम खाई थी. बुरहानपुर पर हमला करके जब संभाजी ने मुगलों के खजाने को लूटा, तो औरंगजेब इसे बर्दाश्त नहीं कर सका था. संभाजी ने अपने उत्कर्ष के दिनों में 210 युद्ध किए और हर युद्ध में उन्हें जीत मिली थी.
औरंगजेब ने संभाजी की मौत के लिए अपना ताज सिर से उतार दिया था:—–
विशाल मुगल सेना पर जब संभाजी के कुछ हजार सैनिक भारी पड़ने लगे तो औरंगजेब बहुत नाराज हो गया और उसने यह कसम खाई थी कि जिस शाही ताज को उन्होंने अपने परिवार वालों को मारकर हासिल किया था, उस ताज को वो तब ही पहनेंगे जब संभाजी की शिकस्त होगी. संभाजी के अपने साले गनोजी शिर्के और सौतेली मां के साजिशों की वजह से संगमेश्वर के युद्ध में संभाजी को बंदी बना लिया गया. औरंगजेब के सामने जब संभाजी को प्रस्तुत किया गया, तो उसने संभाजी से जीवन दान के बदले संपूर्ण मराठा साम्राज्य का आधिपत्य मांगा और उनसे इस्लाम कबूल करने को कहा, लेकिन संभाजी नहीं माने. जिसके बाद उन्हें बहुत यातनाएं दी गईं. उनकी जुबान खींच ली गई, आंख निकाल लिए गए, लेकिन संभाजी नहीं डिगे. अंतत: उनकी हत्या बेरहमी से कर दी गई. लेकिन जब तक संभाजी रहे, मुगल दक्कन पर अपना राज्य कायम नहीं कर पाए.