सोनकच्छ । पुष्पगिरी की पावन धरा पर सोमवार की सुबह एक नया इतिहास लेकर उदित हुई। जहां प्रातः से ही इंद्र
इंद्राणियां स्वर्ग के देवताओं के भेष भूषा में सुंदर सज धजकर नजर आए। यह नजारा देखते ही बन रहा था । पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का प्रारंभ गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज एवं घोषित आचार्य मुनि सौरभ सागर महाराज,आचार्य प्रणाम सागर महाराज, मुनि प्रतीक सागर जी महाराज, मुनि प्रकल्प सागर महाराज के चरणों में श्रीफल चढ़ाकर आज्ञा एवं आशीर्वाद प्राप्त कर प्रारंभ किया गया ।तत्पश्चात इंद्र द्वारा जिनेंद्र भगवान का अभिषेक किया गया तत्पश्चात इंद्रो ने मस्तक पर जिनेंद्र भगवान की प्रतिमा को स्थापित कर एवं इंद्राणीओ ने मंगल कलश हाथों में लेकर बैंड बाजों के साथ भव्य घटयात्रा जुलूस पारसनाथ मंदिर से प्रारंभ होकर संपूर्ण पुष्पगिरी का परिभ्रमण करते हुए कार्यक्रम स्थल पर पहुंचा जहां पर आचार्य संघ के पावन सानिध्य में मंडप उद्घाटन एवं ध्वजारोहण विकास जैन श्रीमती शालिनी जैन दिल्ली द्वारा किया गया।
तत्पश्चात आचार्य संघ मंच पर विराजमान हुआ। आयोजन समिति द्वारा प्रमुख पात्रों का स्वागत अभिनंदन किया गया। पुष्पगिरी तीर्थ के अतिशय कारी पारसनाथ भगवान ,वात्सल्य दिवाकर आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्वलन किया गया। मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज ने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि निगोद से निर्माण की यात्रा ,कंकर से तीर्थंकर की यात्रा का नाम पंचकल्याणक महोत्सव है। कौशांबी नगरी में पद्माकुमार का जब जन्म हुआ तो तीनों लोगों में शांति का वातावरण निर्मित हो गया तथा सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर के द्वारा 15 माह तक रत्नों की पुष्टि की गई । महान आत्मा के गर्भ में आने का है पुण्य प्रताप है की सारी धरती हरी-भरी वृक्ष फलों से सुसज्जित हो गए महापुरुष जहां बैठते हैं वहां शांति और आनंद का उद्भभव होता है। पुष्पगिरी तीर्थ के पंचकल्याणक के 5 दिनों में पाषाण को परमात्मा बनाया जाएगा जिसे देखकर आप भी अपने अंदर की प्रतिभा को जागृत कर जीवन को गौरवपूर्ण बना सकते हैं। इस अवसर पर आचार्य प्रणाम सागर जी महाराज ने सभा को संबोधित किया गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज ने पंचकल्याणक महोत्सव की सभा को संबोधित कर आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि जैन धर्म हि एक मात्र ऐसा है जो बीज से वृक्ष की तक, गर्भ से निर्माण तक की यात्रा का मार्ग बताता है। तीर्थंकर की मां 9 माह तक तीर्थंकर बालक को गर्भ में रखती है तो वह तीसरे भाव में निर्वाण को प्राप्त कर लेती है आप अगर श्रद्धा और समर्पण के साथ भगवान का स्पर्श करते हैं तो आप भी एक दिन त्रिलोकी नाथ की तरह जगत पूज्य बन सकते हैं तीर्थंकर वही है जो गिरने का मार्ग बताते हैं उनके आदर्शों पर जो चलता है। वह 1 दिन उन्हीं की करें बन जाता है। धर्म प्रयोगशाला है जिसे जीवन के सत्य को जानना है वह धर्म की अंतर आत्मा को जान ले और उसी को जीना प्रारंभ कर दे । संध्या कालीन सत्र में गुरुवर की आरती का कार्यक्रम किया गया तत्पश्चात गर्भ कल्याणक की पूर्व क्रियाओं को आकर्षक नाटिका द्वारा दिखाया गया जिसे देखकर लोग भाव विभोर हुए।
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