देवास (डाँ रईस कुरैशी)। उर्दू जिसे सभी भाषाओं में असल भारतीय होने का गौरव प्राप्त है उसे आज पूरी दुनिया में विश्व उर्दू दिवस मनाकर याद किया जा रहा है।
माना जाता है कि उर्दू की शुरुआत सिंध पर मुस्लिम विजय के बाद 711 में हिंदी सिंधी और फारसी भाषाओं के बीच से हुई।
वैसे तो भारतवर्ष में लगभग 121 भाषाएं बोली जाती है मगर भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को ही स्थान दिया गया है। उर्दू भाषा को आज भी पूरी तरह से भारतीय भाषा होने का गौरव प्राप्त है। यह विडंबना है कि इसे मुसलमानों की भाषा कहकर बदनाम किया गया जबकि यह भाषा आम भारतीयों की भाषा है और इस भाषा को आजतक शासकीय भाषा होने का गौरव प्राप्त है।
उर्दू भाषा के विकास की गाथा सन 1200 से लेकर 1800 तक मानी जाती है इस 600 सालों के सफर में उर्दू का बहुत विकास हुआ। एक समय ऐसा भी आया जब इसे भारतीय भाषा के साथ-साथ कोर्ट,कचहरी थाना तहसील की मुख्य भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ। आज भी पुलिस और कोर्ट के रजिस्टर में उर्दू को उचित स्थान दिया जाता है जो सर्वविदित है।
उर्दू है जिसका नाम हम जानते हैं दागं .. सारे जहां में धूम हमारी जबा की है।
वैसे तो पूरी दुनिया में 240 देश है मगर संयुक्त राष्ट्र के द्वारा 195 देशों को ही मान्यता दी गई है और इन देशों में लगभग 25 से 30 देश ऐसे हैं जहां उर्दू भाषा को समझा जाता है पढ़ा जाता है और बोला जाता है। दुनिया में भारत बांग्लादेश पाकिस्तान और खाड़ी के कुछ मुल्क एसे है जहा यह भाषा आज भी बुलंदी पर काबिज है।
मैं रोशनी था मुझे फैलते ही जाना था, वो मिट गए जो समझते रहे चिराग मुझे।
वैसे तो इस जबान के बारे में लगभग सभी साहित्यकारों ने खुब बोला और लिखा है मगर आलमी शायर इकबाल अशर दिल्ली ने बहोत खुब लिखा है।
उर्दू है मेरा नाम मैं खुसरो की पहेली, मैं मीर की हमराज हूं गालिब की सहेली..
दक्कन के वली ने मुझे गोदी में खिलाया, सौदा के कसीदो ने मेरा हुस्न बढ़ाया, हे मीर की अजमत के मुझे चलना सिखाया, मैं दाग के आंगन में खिली बनके चमेली.. उर्दू है मेरा नाम..
गालिब ने बलन्दी का सफर मुझको सिखाया, हाली ने मुरव्वत का सबक याद कराया, इकबाल ने आईना ए हक मुझको दिखाया, मोमिन ने सजाई मेरे ख्वाबों की हवेली, उर्दू है मेरा नाम..
हे जोक की अजमत के दिए मुझको सहारे, चकबस्त की उल्फत ने मेरे ख्वाब सवारे, फानी ने सजाए मेरी पलकों पे सितारे, अकबर ने रचाई मेरी बे रंग हथेली, उर्दू है मेरा नाम..
क्यों मुझको बनाते हो ताआस्सुब का निशाना, मैंने तो कभी खुद को मुसलमा नहीं माना, देखा था कभी मैंने भी खुशियों का जमाना, अपने ही वतन में हूं मगर आज अकेली, उर्दू है मेरा नाम मैं खुसरो की पहेली।
आलमी शायर अल्लामा इक़बाल का आज यौ मैं पेदाइश है उनका जन्म पंजाब के सियालकोट में 9-11-1877 में हुआ था आपने उर्दू की जो खिदमत कि वह किसी से छुपी नहीं है एक से बढ़कर एक अशआर हर विषय पर आप ने लिखे और कई जगहों पर दुनिया को आईना भी दिखाया। उन्हीं के जन्मदिवस पर आज पुरी दुनिया विश्व उर्दू दिवस मनाती है इस मौके पर हमारी ओर से भी सभी को बहुत-बहुत मुबारकबाद।
उम्मीद करते हैं उर्दू पर लगा सांप्रदायिकता का दाग अब के बाद शायद हट जाए और लोग फिर से उर्दु से उतनी ही मोहब्बत करने लग जाए जैसी पहले किया करते थे।