देवास। सनातन धर्म आदि, अनादि और दया से भरपूर है। दया ही सत्य सनातन धर्म का मूल आधार है। जिसमें जीव मात्र के प्रति दया भावना समाहित है। और यही सनातन धर्म की श्रेष्ठता है। जाति कर्म की होती है, जीव की नहीं, शरीर की नहीं, जिसे जाना पहचाना जाए उसे जाति कहते हैं। स्वांस ही गुरु और स्वांस ही परमात्मा है। जिसमें स्वांस आती जाती नही है वह मुर्दा है। क्योंकि मुर्दे में स्वांस ना तो आती है और ना ही जाती है।यह शरीर पैदा होता है और फिर मर जाता है। शरीर की यात्रा पूरी करके जीव वापस अन्य देह में आ जाता है। यह बात शरद पूर्णिमा प मंगल मार्ग टेकरी स्थित कबीर प्रार्थना स्थली पर आयोजित भजन, सत्संग, कीर्तन गुरुवाणी पाठ में आश्रम प्रमुख साहेब मंगल नाम ने कही। उन्होंने कहा कि काहू का न करो निरादर, सब कोई ओढ़े मेरी चादर। जीवन में किसी का भी अनादर ,निरादर नहीं करना चाहिए। सभी ने परमात्मा रुपी चादर ओढ़ी हुई है। जो शब्द ज्ञान देगा वह शरीर के रोम-रोम को प्रफुल्लित कर देगा। हम पिछली बातों को लेकर लड़ते झगड़ते रहते हैं, जो मिथ्या है। जिसने वर्तमान को जी लिया वही सत्य है। पिछली बातों से तो बिगड़ना ही है। सुधरना कुछ भी नहीं है। करिए नित सतसंगत को बाधा सकल नसाय। कला, काल और कल्पना सत्संगत से जाए। प्रत्येक मानव सत्य की संगति करते हुए भजन सुमिरण कर इस संसार रूपी भवसागर से पार होकर प्रभु की शरण में जा सकता है। कार्यक्रम के अंत में महा प्रसादी का वितरण किया गया इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहेब कबीर के अनुयाई उपस्थित थे। यह जानकारी बाबूलाल ओसवाल ने दी।
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