देवास। सदगुरु कबीर ने कहा है कि कोटि तीर्थ यही बताऊं,कर दर्शन काया माही। तुम्हारी इस काया नगर में ही कोटि तीर्थ बसे हैं और तुम बाहर भटकते फिर रहे हो। बाहर भटकने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है इसलिए भटको मत जागो। जो तुम्हारे अंदर ही बैठा हुआ है,जो निकट से भी निकट है उसे जानों समझो। परमात्मा ठहर जाने से ही प्राप्त होगा, लेकिन तुम दूर-दूर की यात्रा कर उसे ढूंढ रहे हो।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने प्रताप नगर प्रार्थना स्थली पर आयोजित गुरुवाणी पाठ,गुरु-शिष्य चर्चा में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि जिसकी देह नहीं जो विदेही है वहीं पुरुष है। बाकी संसार में जितने भी जीव चराचर की देह है वह सब नारियां हैं। विदेह और देह को पहचानने के लिए हमने गुण तत्व को समझा, जाना। 84 लाख देह में हमारे जीव की चेतना का विकास केंद्र विकास ग्राउंड बनाया है। उसको समझने के बाद अब तो हट जाओ। अब तो इस सांसारिक कीचड़ में मत फंसो। रजोगुण, सतोगुण,तमोगुण में आकर दुख भोगना,देह की पीड़ाओं को सहन करना कब तक करोंगे। अपनी चेतना का विकास करके उस परम तत्व को जान करके पक्के घर में आ जाओ जीव तत्व में। ताकि 84 लाख योनियों की जो पीड़ा दुख है इसको हर लें। सद्गुरु कबीर साहेब इसलिए आए थे जब जीव को दुखी देखा। इस संसार में माता-पिता ने प्रेम रथ पर चढ़कर इस पीड़ित देह का निर्माण कर दिया। जिसमें सुख-दुख दोनों है। अब हम चेतना का विकास करके पक्के घर में आ जाएं,पीड़ा रहित घर में आ जाएं, सुखी घर में आ जाएं। जो जीव तत्व है,जो ना जलाए से जलता है,ना मरने से मरता है। परम तत्व में प्रवेश करने का अवसर मानव तन है। स्वर को जानकर,पकड़कर,समझकर पुरुषतत्व,परमतत्व को जाने। स्वर में ही पांचों तत्वों को जाना गया है। इसमें अमि तत्व बह रहा है। मुक्त होने का स्वर ही रास्ता है। इस दौरान सद्गुरु मंगलनाम साहेब का साध संगत जीवा साहेब,सेवक वीरेंद्र चौहान,राजेंद्र चौहान,घिचलाई पीपलरावां के रणजीतसिंह नागा,कमलगिरी गोस्वामी, कैलाशचंद्र गोड़ ने पुष्पमालाओं,शाल,श्रीफल से सम्मान कर नारियल भेंट किया। सैकड़ो साध संगत नेम हाप्रसाद ग्रहण की।
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